Saturday, December 5, 2009

मैं समय को रोक दूँगा पापा

(अथर्व के वास्तविक प्रतिक्रिया पर आधारित )

पापा जब मैं हो जाउँगा बड़ा

तो आप बन जायेंगे क्या

आप छोटे हो जायेंगे मेरे जैसा ।

तीन बरस के पुत्र को उठाकर गोद में

कहा पिता ने मोद में -

अरे नहीं पुत्र

तबतक तो मैं और बड़ा हो जाऊंगा ।

मैं आपके इतना बड़ा हो जाऊंगा जब

मैं बूढ़ा हो जाऊंगा तब

क्या होगा फ़िर उसके बाद

मैं मर जाऊंगा उसके बाद

मम्मी मेरी रहेगी तो

नहीं पुत्र , वह भी मर जाएगी बूढी हो ।

चुप हो गया पुत्र

चिंता की छाया उसके चेहरे पर झलकने लगी

फ़िर पूछा उकता कर

आप और मम्मी होंगे ही क्यों बूढ़े

क्यो जायेंगे मर

मैं बड़ा नहीं बनूँगा , बस्स।

पुत्र ऐसा भी कभी होगा क्या

समय का चक्र रुकेगा क्या

हँसकर कहा पिता ने -

समय आगे बढ़ता जाता है सदा ही

समय के साथ देह बूढ़ा होता है सदा ही

जो भी जन्म लेता है धरा पर

करे कुछ भी कोई

समय से सब निश्चित मरा पर

पुत्र हो गया उदास

उपाय नहीं कोई पास

अचानक उसके चेहरे पर दृढ़ता छा गई

मन की प्रतिज्ञा भा गई

ले खिलौने का हथोड़ा वह चल पड़ा

आँखों में संकल्प , तमतमा कर था खड़ा ।

चले कहाँ तुम पुत्र , पूछा पिता ने

मैं चला दुःख को जड़ से मिटाने

मैं सभी घड़ियों को तोड़ दूँगा पापा

मैं समय को रोक दूँगा पापा।

..........श्याम दरिहरे ........