आजादी की हमउम्र मेरी माँ
आजादी से अधिक बूढी हो गई है
आजादी बासठ बरस बाद भोग रही है
चिप्स कोको कोला चिकेन पिजा और बर्गर
पाकर दस प्रतिशत का ग्रोथ
उमंग से भरी है
अपना धन विदेशी बैंको में धरी है
करती है सब कुछ
विजय चौक पर पताका गाड़।
मेरी माँ सुई की छेद से धागा घुसाते
चौंधिया जाती है
माँ के सिर पर फटी साडी में
मुस्कुरा रही है उजली आजादी
मेरा सबसे छोटा भाई
बारह अगस्त से है व्यस्त
बेचना है तिरंगा उसे पब्लिक स्कूल में
करनी है खड़ी अपनी पढ़ाई की फीस
पिताजी सुबह से ढो रहे हैं लाठी के सहारे
खेतों में आजादी का गोबर
पाँव की बेमाई हंस रही है उन पर मुंह फाड़ -
आज भी उन्हें पेट की पड़ी है
गाने नहीं गए जन गण मन अधिनायक जय हे।
चौक पर
जहाँ १९४७ से स्वाधीनता दिवस खड़ी है ।
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