Tuesday, August 11, 2009

मेरे घर की आजादी


आजादी की हमउम्र मेरी माँ


आजादी से अधिक बूढी हो गई है


आजादी बासठ बरस बाद भोग रही है


चिप्स कोको कोला चिकेन पिजा और बर्गर


पाकर दस प्रतिशत का ग्रोथ


उमंग से भरी है


अपना धन विदेशी बैंको में धरी है


करती है सब कुछ


विजय चौक पर पताका गाड़।


मेरी माँ सुई की छेद से धागा घुसाते


चौंधिया जाती है


माँ के सिर पर फटी साडी में


मुस्कुरा रही है उजली आजादी


मेरा सबसे छोटा भाई


बारह अगस्त से है व्यस्त


बेचना है तिरंगा उसे पब्लिक स्कूल में


करनी है खड़ी अपनी पढ़ाई की फीस


पिताजी सुबह से ढो रहे हैं लाठी के सहारे


खेतों में आजादी का गोबर


पाँव की बेमाई हंस रही है उन पर मुंह फाड़ -


आज भी उन्हें पेट की पड़ी है


गाने नहीं गए जन गण मन अधिनायक जय हे।


चौक पर


जहाँ १९४७ से स्वाधीनता दिवस खड़ी है

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